सुमित्रा नंदन पंत की जीवनी | Sumitranandan Pant Biography in hindi

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“शशि किरणों से उतर उतर कर भू पर कामरूप नभचर

चूम नवल कलियों का मृदुमुख सिखा रहे थे मुस्काना”

Sumitranandan Pant biography in hindi उपरोक्त काव्य पंक्तियों से प्रकृति के गूढ़ रहस्य को सहजता से उद्घाटित करना एक ऐसे कलम के सिपाही की रचनात्मक काबिलियत है, जिसने प्रकृति की छांव में अपने संघर्षशील जीवन को तपाया और हिंदी साहित्य में व्यापक मानवीय सांस्कृतिक तत्व को अभिव्यक्ति देने की कोशिश की. ये थे हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक सुमित्रा नंदन पंत. पंत का हिंदी साहित्य में दिया गया योगदान अविस्मरणीय है.

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सुमित्रा नंदन पंत की जीवनी ( Sumitranandan Pant biography in hindi )

प्रारंभिक जीवन (Sumitranandan Pant early life) –

सात साल की उम्र, यह वह उम्र है जब बच्चे पढ़ना-लिखना शुरू करते हैं. परन्तु जब इसी उम्र का एक बच्चा कविताएँ लिखना शुरू कर दे तो, उसकी भावना की गहराई को समझने के लिए भी गहरी समझ की जरूरत होती है. ऐसा ही था सुमित्रा नंदन पंत का बचपन. पंत का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड के  कुमायूं की पहाड़ियों में स्थित बागेश्वर के एक गांव कौसानी में हुआ था. इनके जन्म के छ: घंटे के भीतर ही इनकी माँ का देहांत हो गया था. इनका पालन-पोषण दादी के हाथों हुआ था. पंत सात भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. परिवार वालों ने इनका नाम गोसाईं दत्त रखा. इन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूल की  पढाई अल्मोड़ा से पूरी की और 18 साल की उम्र अपने भाई के पास बनारस चले गए. यहाँ से इन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की. इन्हें गोसाईं दत्त नाम पसंद नहीं आ रहा था. तब इन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रा नंदन पंत रख लिया. हाई स्कूल पास करने के बाद सुमित्रा नंदन पंत स्नात्तक की पढाई करने के लिए इलाहाबाद चले गए और वहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. परंतु स्नात्तक की पढाई बीच में ही छोड़कर वे महात्मा गाँधी का साथ देने के लिए सत्याग्रह आंदोलन में कूद पड़े. इसके बाद अकादमिक पढाई तो सुमित्रा नंदन पंत नहीं कर सके, परंतु घर पर ही उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और बंगाली साहित्य का अध्ययन करते हुए अपनी पढाई को जारी रखा. महात्मा गाँधी की जीवनी यहाँ पढ़ें|

पंत की लेखन शैली –

सुमित्रा नंदन पंत को आधुनिक हिंदी साहित्य का युग प्रवर्तक कवि माना जाता है. अपनी रचना के माध्यम से पंत ने भाषा में निखार लाने के साथ ही भाषा को संस्कार देने का भी प्रयास किया. इन्होंने अपने लेखन के जादू से जिस प्रकार नैसर्गिक सौंदर्य को शब्दों में ढ़ाला, इससे उन्हें हिंदी साहित्य का ‘वर्डस्वर्थ’ कहा गया. पंत की रचनाओं पर रविंद्रनाथ टैगोर के अलावा शैली, कीट्स, टेनिसन आदि जैसे अंग्रेजी कवियों की कृतियों का भी प्रभाव रहा है. पंत हालाँकि प्रकृति के कवि माने जाते हैं, परंतु वास्तविकता में वह मानव सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना के भी कुशल कवि थे. रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी यहाँ पढ़ें|

पंत की रचनात्मक यात्रा –

सुमित्रा नंदन पंत ने सात साल की उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था, जब वे चौथी कक्षा में पढ़ते थे. इस दौरान पहाड़ों का नैसर्गिक सौंदर्य ही उनका प्रेरणा स्त्रोत बना. 1907-1918 का यह वह काल था, जब पंत पहाड़ की वादियों में अपनी रचनाशीलता को सींच रहे थे. इस दौरान इन्होंने प्राकृतिक सौंदर्य को जितना अनुभव किया और समझा, उसे छोटी-छोटी कविताओं में ढ़ालने का प्रयास किया. उस दौर की पंत की कविताओं को संकलित कर 1927 में “वीणा” नाम से प्रकाशित किया गया. इससे पूर्व वर्ष 1922 में सुमित्रा नंदन पंत की पहली पुस्तक  “उच्छावास” और दूसरी “पल्लव” नाम से प्रकाशित हुई. फिर “ज्योत्स्ना” और “गुंजन” का प्रकाशन हुआ. पंत की इन तीनों कृतियों को कला साधना एवं सौंदर्य की अनुपम कृति माना जाता है. हिंदी साहित्य में इस काल को पंत का स्वर्णिम काल भी कहा जाता है.

वर्ष 1930 में पंत महात्मा गाँधी के साथ ‘नमक आंदोलन’ में शामिल हुए और देश सेवा के प्रति गंभीर हुए. इसी दौरान वह कालाकांकर में कुछ समय के लिए रहे. यहाँ उन्हें ग्राम्य जीवन की संवेदना से रूबरू होने का मौका मिला. किसानों की दशा के प्रति उनकी संवेदना उनकी कविता ‘वे आँखें’ से स्पष्ट झलकती है-

“अंधकार की गुहा सरीखी, उन आँखों से डरता है मन,

भरा दूर तक उनमें दारुण, दैन्य दुःख का नीरव रोदन

सुमित्रा नंदन पंत ने अपनी रचना के माध्यम से केवल प्रकृति के सौंदर्य का ही गुणगान नहीं किया, वरन् उन्होंने प्रकृति के माध्यम से मानव जीवन के उन्नत भविष्य की भी कामना की है. उनकी कविता की इन पंक्तियों से उनके उसी सौन्दर्यबोध का उद्घाटन होता है.

धरती का आँगन इठलाता

शस्य श्यामला भू का यौवन

अन्तरिक्ष का ह्रदय लुभाता!

जौ गेहूँ की स्वर्णिम बाली 

भू का अंचल वैभवशाली 

इस अंचल से चिर अनादि से 

अंतरंग मानव का नाता..

सुमित्रा नंदन पंत का भाषा पर पूर्ण अधिकार था. उपमाओं की लड़ी प्रस्तुत करने में भी वे पारंगत थे. उनकी साहित्यिक यात्रा के तीन प्रमुख पड़ाव माने जाते हैं – पहले पड़ाव में वे छायावादी हैं, दूसरे पड़ाव में प्रगतिवादी और तीसरे पड़ाव में अध्यात्मवादी. ये तीनों पड़ाव उनके जीवन में आते रहे बदलाव के प्रतीक भी हैं. जीवन के अठारहवें वर्ष तक वे छायावादी रहे. फिर स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान मानवता को नजदीक से देखने के साथ मार्क्स और फ्रायड की विचारधारा से प्रभावित होने के कारण पंत प्रगतिवादी हो गए. बाद के वर्षों में जब वह पोंडिचेरी स्थित अरविंदो आश्रम गए तो, वहां वे श्री अरविंदो के दर्शन के प्रभाव में आए. इसके बाद उनकी रचनाओं पर अध्यात्मवाद का प्रभाव पड़ा. हिंदी साहित्य को वृहद् रूप देने के उद्देश्य से सुमित्रा नंदन पंत ने 1938 में “रूपाभ” नामक एक प्रगतिशील मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी शुरू किया था. इस दौरान वे प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़े रहे. आजीविका के लिए पंत ने वर्ष 1955 से 1962 तक आकाशवाणी में बतौर मुख्य प्रोड्यूसर के पद पर कार्य किया था.

पंत की प्रमुख कृतियाँ (Sumitranandan Pant works) –

सात वर्ष की अल्पायु यानि वर्ष 1907 से शुरू हुआ, सुमित्रा नंदन पंत का रचनात्मक सफ़र, 1969 में प्रकाशित उनकी अंतिम कृति “गीतहंस” के साथ समाप्त हुआ. इस दौरान उनके प्रमुख कविता संग्रह जो प्रकाशित हुए, वे हैं- वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, युगांतर, उत्तरा, युगपथ, चिदम्बरा, काला और बुढा चाँद और लोकायतन. इस दौरान “पांच कहानियां” नाम से उनका एक कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुआ. वर्ष 1960 में प्रकाशित उपन्यास “हार” और 1963 में प्रकाशित आत्मकथा संस्मरण “साठ वर्ष : एक रेखांकन” भी उनकी अनमोल कृतियों में शामिल हैं. उन्होंने एक महाकाव्य भी लिखा जो “लोकायतन” के नाम से प्रकाशित हुआ. इस उपन्यास से उनकी विचारधारा और लोक जीवन के प्रति उनकी सोच की झलक मिलती है.

पंत को मिले सम्मान और पुरस्कार (Sumitranandan Pant awards) –

अनमोल कृतियों के लिए सुमित्रा नंदन पंत को कई पुरस्कार और सम्मान मिले है. वर्ष 1960 में उन्हें 1958 में प्रकाशित कविता संग्रह “काला और बुढा चाँद” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया. वर्ष 1961 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान मिला. वर्ष 1968 में पंत को उनके प्रसिद्ध कविता संग्रह “चिदम्बरा” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला. “लोकायतन” कृति के लिए उन्हें सोवियत संघ सरकार की ओर से नेहरु शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

सुमित्रा नंदन पंत की मृत्यु (Sumitranandan Pant death) –

28 दिसम्बर 1977 को हिंदी साहित्य के इस मूर्धन्य उपासक का संगम नगरी इलाहबाद में देहांत हो गया. उनकी मृत्यु के पश्चात उनके सम्मान में सरकार ने उनके जन्मस्थान उत्तराखंड के कुमायूं में स्थित गाँव कौसानी में उनके नाम पर एक संग्रहालय बनाया है. यह संग्रहालय देश के युवा साहित्यकारों के लिए एक तीर्थस्थान है और हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत भी.

तारीखों में सुमित्रा नंदन पंत –

1900    सुमित्रा नंदन पंत का जन्म
1907         कविता लेखन शुरू किया
1918भाई के पास बनारस प्रवास और हाई स्कूल की परीक्षा पास की.
1922उनकी कृति “उच्छावास” का प्रकाशन
1926कविता संग्रह “पल्लव” प्रकाशित
1927उनके द्वारा बचपन में लिखे गए कविताओं का संग्रह “वीणा” का प्रकाशन
1929कृति “ग्रंथि” का प्रकाशन
1932कविता संग्रह “गुंजन” प्रकाशित
1960साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए.
1961प्रतिष्ठित पद्म भूषण सम्मान मिला.
1968कृति “चिदम्बरा” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे गए.
197777 वर्ष की आयु में देहावसान.

सही मायने में सुमित्रा नंदन पंत छायावाद के अग्रिम पंक्ति की कवियों में एक थे. नैसर्गिक सौंदर्य के साथ प्रगतिशील विचारधारा और फिर अध्यात्म के कॉकटेल से उन्होंने जो रचा वह अविस्मर्णीय बन गया और हिंदी साहित्य में मील का पत्थर साबित हुआ. उन्होंने हिंदी काव्य को एक सशक्त भाषा प्रदान की, उसे संस्कार दिया और फिर पुष्ट तथा परिष्कृत किया. हिंदी साहित्य में इस अनमोल योगदान के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे.

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