अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा International North South Transport Corridor in hindi
आईएनएसटीसी, ‘इंटरनेशनल नार्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर’ हैं जिसका मतलब ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा’ होता है. यह एक बहुविध परिवहन था, जिसकी स्थापना 12 सितम्बर 2000 में सैंट पीट्सबर्ग में हुई थी. इसकी स्थापना में इरान, रूस और भारत ने मुख्य भूमिका निभायी. इसकी स्थापना का मूल उद्देश्य इन देशों के अन्य राज्यो से सहयोग लेना और सहयोग करना था. परिवहन का ये कॉरिडोर हिन्द महासागर और फारस की खाड़ी को इरान के इस्लामिक रिपब्लिक की सहायता से कैस्पियन सागर से जोड़ता है. इसके बाद ये रुसी फेडरेशन के ज़रिये सैंट पीट्सबर्ग और उत्तरी यूरोपीय भागों से जोडता है. इस मुहीम में हाल ही में ग्यारह और देश, सदस्य के रूप में शामिल हुए हैं. इनमे रिपब्लिक ऑफ़ अज़रबैजान, रिपब्लिक ऑफ़ अर्मेनिया, रिपब्लिक ऑफ़ खाज़कस्तान, कयरगुज़ रिपब्लिक, रिपब्लिक ऑफ़ तज़ाकिस्तान, रिपब्लिक ऑफ़ टर्की, रिपब्लिक ऑफ़ उक्रेन, रिपब्लिक ऑफ़ बेलारूस, ओमान, सिरिया और बुल्गारिया शामिल हुए हैं.

अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (International North South Transport Corridor in hindi)
इस परिवहन के रास्ते की लम्बाई 7200 किमी की है, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत, इरान, अज़रबैजान और रूस के बीच व्यापार बढ़ाना है. इसकी सहायता से किसी बड़े शहरों जैसे मुंबई, मोस्को, तेहरान, बाकू, बन्दर अब्बास, अस्त्रख़ान, बन्दर अंजेल आदि के बीच विनिमय बढ़ सकेगा. इसके परीक्षण के लिए इसका सन 2014 में ‘ड्राई रन’ भी करके देखा गया.
इसका पहला ड्राई रन मुंबई से बाकू के लिए बन्दर अब्बास से होते हुए तथा दूसरा मुंबई से अस्त्र ख़ान के लिए बन्दर अंजेल से होते हुए किया गया. इस ड्राई रन का मुख्य उद्देश्य रास्ते में पड़ने वाले ट्रेफिक (बोटलनेक) का अध्ययन करना था. इस परीक्षण में देखा गया कि इसकी सहायता से ट्रांसपोर्ट कास्ट प्रति 15 टन के कार्गो में 2500 डॉलर की कमी आई है. इन दो रास्तों के अलावा कज़ाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान को भी अज़र में रखा गया है.
अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे का इतिहास (The International North South Transport Corridor history)
16 मई सन 2012 में सर्वप्रथम रूस, ईरान और भारत ने इस समझौते पर हस्ताक्षर करके इस मुहीम का आग़ाज़ किया था. ये तीनों देश इस नीति के संस्थापक सदस्य हैं. इसके बाद इसमें केंद्र एशिया के कई देश, जैसे अर्मेनिया, बेलारूस आदि अपने सामर्थ्यानुसार शामिल हुए. अज्रेबैजन इस प्रोजेक्ट में हमेशा से बहुत सक्रिय देश रहा है, और इन दिनों इस नीति की सफलता के लिए कई सड़कों और रेल लाइनों का निर्माण कर रहा है. तुर्कमेनिस्तान इस समय औपचारिक रूप से इसका सदस्य नहीं बना है, किन्तु इसके पास इस कॉरिडोर से जुड़ने के लिए सड़क मार्ग हैं. प्राधानमंत्री मोदी ने अपने तुर्कमेनिस्तान दौरे के समय इस देश को इस प्रोजेक्ट में शामिल होने का न्योता दिया था. अर्थात भविष्य में इस प्रोजेक्ट के साथ तुर्कमेनिस्तान भी जुड़ सकता है.
अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे का उद्देश्य (The International North South Transport Corridor objective)
इस परिवहन व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य था व्यापार के लिए कम समय लगने वाले रास्ते की खोज तथा परिवहन खर्च को कम करना. शोधकर्ताओं के अनुसार इससे मध्य एशिया, रूस, इरान और भरात के बीच व्यापार की मात्रा में काफ़ी बढ़ोत्तरी होगी. साथ ही इस बात का अंदाज़ा लगा है कि इसकी सहायता से आम तौर पर होने वाले ट्रेड खर्च में कम से कम 30 प्रतिशत की कमी आएगी. साथ ही रास्ते में लगने वाले समय में 40 प्रतिशत तक की कमी आएगी. इन विशेषज्ञों के अनुसार मुंबई, मास्को, बाकू, तेहरान आदि बड़े शहरों के बीच व्यापार बढेगा.
अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे के लिए सदस्य देश (International North South Transport Corridor conference)
इसमें शामिल हुए देशो की संख्या निम्नलिखित है :
1 | भारत |
2 | इरान |
3 | रूस |
4 | टर्की |
5 | अज़रबैजन |
6 | कजाखस्तान |
7 | अर्मेनिआ |
8 | बेलारूस |
9 | ताजिकिस्तान |
10 | किर्गिस्तान |
11 | ओमान |
12 | यूक्रेन |
13 | बुल्गारिया |
14 | एस्तोनिया |
इस वर्ष भारत रूस के बीच के संबंध के 70 वर्ष पोरे होने पर भारत सरकार ने फैसला लिया है कि जल्द ही भारत और रूस के बीच इस नीति के तहत एक ड्राई रन परिक्षण किया जाएगा. प्रधानमंत्री रूस के INSTC पॉइंट से अपने जून के दौरे के दौरान अस्त्र ख़ान जायेंगे. इस नीति के सहारे सरकार अपने व्यापार नीति को बढ़ावा देना चाहती है.
अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे पर सरकार का फैसला (International North South Transport Corridor latest news)
पिछले अक्टूबर रूस के जेएससी आरज़ेडडी लोजिस्टिक, ईरान रेलवे, अज़रबैजान रेलवे और लोगिस्टिक कंपनी एडीवाई एक्सप्रेस ने पहला परिक्षण इस नीति के अनुसार किया गया. ये ट्रेन 22 सितम्बर को मुंबई से रवाना हुई और 12 अक्टूबर के रूस के कलूंगा क्षेत्र पहुंची. इस बीच 23 दिन का समय लगा. भारत और रूस अपने बीच समुद्री मार्ग को अपनाते हैं. इस रास्ते से कुल 40 दिन का समय लगता है. औद्योगी रेडिएटर के बड़े बड़े कंटेनर मुंबई से इरान बन्दर अब्बास के रास्ते से पहुंचाई गयी है.
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